![]() |
म हाकुंभ में स्नान की भीड़ अपने चरम पर थी। महाशिवरात्रि के मौके पर स्नान न कर पाने की चिंता लोगों को परेशान कर रही थी। इसलिए किसी भी तरह लोग घाट तक पहुंचना चाहते थे। संगम तट तक जाने का रास्ता खचाखच भरा था, लेकिन दूर से यह नजारा देखने वाला एक साधु चिंतित दिख रहा था।
लंबे, घने बाल और लंबी दाढ़ी वाला वह साधु रहस्यमयी प्रतीत हो रहा था। कुछ पल भीड़ को देखने के बाद, उसने अपने हाथ में थामे प्राचीन त्रिशूल को सतरंगी कपड़े से ढक लिया और गंभीर भाव से भीड़ में प्रवेश करने लगा।
जैसे ही वह आगे बढ़ा, उसने त्रिशूल को कसकर पकड़ लिया, ताकि भीड़ में उसके हाथों से यह छूट न जाए। लेकिन भीड़ में प्रवेश करते ही त्रिशूल से दिव्य आभा निकलने लगी। मानो उसमें से कोई रोशनी निकल रही है जो कपड़े के ऊपर चमक रही है।तभी एक छोटे बच्चे की नजर भी में उस त्रिशूल पर पड़ गई। वह त्रिशूल को छूना चाहता था, लेकिन भीड़ की वजह से बार बार वह दूर हो जा रहा था। उसने अपने पिता से कहा, "पापा, देखो! उस बाबा के हाथ में क्या है? उसमें से रोशनी निकल रही है!" पिता ने साधु की ओर देखा। लंबे बाल, लंबी दाढ़ी और बड़े नाखूनों वाले उस साधु के शरीर पर कई गहरे निशान थे, मानो किसी ने उसे बुरी तरह घायल किया हो। ऐसा लग था, जैसे उसे किसी ने बहुत बुरी तरह कौड़ियां से मारा है। पिता ने बच्चे को गोद में उठा लिया। भीड़ आगे बढ़ रही थी। लेकिन पिता की नजर जैसे ही साधु पर पड़ी, साधु वहीं रुक गया। ऐसा लग रहा था जैसे साधु को पीछे से भी पता चल गया था कि किसी की नजर उसपर पड़ी है।
बच्चे के पिता ने फौरन नजरे चुराई और भीड़ में दूसरी तरफ चलने लगा। उनके जाते ही साधु और तेज तेज भीड़ में चलने लगा। उसके त्रिशूल को रोशनी अब बढ़ती जा रही थी, ऐसा लग था मानों साधु नहीं चाहता कि कोई उसे देखे। वहीं दूसरी तरफ बच्चे के पिता के मन में यही बात घूम रही थी कि आखिर ऐसा साधु उसने आज से पहले कभी नहीं देखा। साधु के हाथ में कोई चीज थी जो चमक रही थी, लेकिन वो चीज क्या थी, उसे पता लगाना था। बच्चे के पिता, नरेंद्र, जो पेशे से पत्रकार थे, को उस साधु का व्यवहार संदिग्ध लगा। उन्होंने अपनी पत्नी को बच्चे का ध्यान रखने के लिए कहा और खुद साधु का पीछा करने लगे।
![]() |
नरेंद्र को उस साधु का बर्ताव कुछ ठीक नहीं लग रहा था। इसलिए उसने बच्चे को अपनी पत्नी को पकड़ाया और साधु को भीड़ में ढूंढने निकल पड़ा। उसने पत्नी से कहा कि वह उसे थोड़े देर में फोन करेगा, घाट पर पहुंचे कर। पत्नी को समझ नहीं आ रहा था कि उसे अचानक क्या हो गया, लेकिन भीड़ बहुत ज्यादा थी, इसलिए उसने ज्यादा सवाल जवाब करने की बजाय जाने दिया। भीड़ में नरेंद्र साधु को खोज रहा था, उसे बस जानना था को वह हाथ में क्या लेकर आया था। उधर, साधु तेजी से घाट की ओर बढ़ रहा था। जैसे-जैसे वह आगे बढ़ता, उसके त्रिशूल की रोशनी और तेज होती गई। तभी अचानक मौसम ने करवट बदली, काले बादल छा गए और तेज हवाएं चलने लगीं। संगम का पानी भी उफान पर था।
तेज धूप के बाद अचानक ऐसा मौसम होना , हर किसी को हैरान और परेशान कर रहा था। वहीं दूसरी तरह नरेंद्र जो साधु को ढूंढ रहा था, उसे अभी तक साधु कहीं नजर नहीं आए थे। मौसम खराब होता देख नरेंद्र को अपने परिवार वालों की फ़िक्रा होने लगी थी, लेकिन मन ही मन उसके यह चल रहा था कि अचानक मौसम खराब कैसे हो गया। कहीं ये उस रहस्यमई बाबा की वजह से तो नहीं। तभी उसने सिर पर हाथ रखते हुए कहा, मैं इतना अंधविश्वासी नहीं हूं, किसी बाबा का मौसम से क्या लेना देना। मौसम है कभी भी खराब हो सकता है। लेकिन उसके हाथ में क्या था, ये तो मैं जानकर रहूंगा।
तेज हवाएं बहने लगी थी, संगम का पानी भी तेज होने लगा था। जो लोग पानी में स्नान कर रहे थे, डर के कारण वह भी बाहर आ गए थे। भीड़ भी मानों सहम गई थी। तेज हवा लोगों को पीछे की तरफ धकेल रही थी। लेकिन लोग फिर भी हवा को चीरते हुए आगे बढ़ रहे थे। उधर साधु की त्रिशूल से निकल रही रोशनी अब तेज होने लगी थी। साधु लगातार तेज हवा को चीरते हुए आगे बढ़ रहा था। तभी नरेंद्र को साधु नजर आया।
![]() |
हवा साधु को पीछे की तरफ धकेल रही थी, लेकिन वह रुका नहीं। अब साधु और नरेंद्र दोनों घाट पर पहुंच गए थे। जैसे ही साधु ने घाट के पानी में कदम रखा, पानी का बहाव तेज होने लगा। किसी की भी नजर साधु पर नहीं थी, क्योंकि लोग अपने में मगन थे, लेकिन नरेंद्र लगातार उस पर नजर बनाए हुए था। जैसे ही पानी का बहाव तेज हुआ, लोग पानी से बाहर की तरफ भागने लगे। नरेंद्र ने देखा कि पानी का बहाव साधु के पैर रखने से अचानक बदला था। वो समझ गया कि ये साधु कोई आम साधु नहीं है।
अचानक सभी लोग बाहर को तरफ भागने लगे। लेकिन साधु लगातार पानी में अंदर की तरफ बढ़ता जा रहा था। तभी बारिश भी शुरू हो गई। साधु पानी में इतना अंदर जा चुका था कि उसके कमर तक पानी पहुंच गया था। ये सब नजारा नरेंद्र अपनी आंखों से देख रहा था। लेकिन कोई और उस साधु की तरफ क्यों नहीं देख रहा था। नरेंद्र को ये बात समझ नहीं आ रही थी। तभी उसकी पति और बच्चे भी वहां आ गए। बच्चे की नजर पानी में उस साधु की तरफ पड़ी। उसने तेज चिल्लाते हुए कहा। देखो बाबा वहां है पापा, ये वही बाबा है ना।
नरेंद्र समझ गया कि यह कोई चमत्कारी साधु था, जो महाकुंभ में आए करोड़ों लोगों की जान बचाने आया था। जरूर वह त्रिशूल महादेव से जुड़ा था, इसलिए उसके आसमान की तरफ करते ही, आंधी तूफान वाला मौसम ठीक हो गया। वह मुस्कुराते हुए परिवार के पास गया। उसने अपने बच्चे के गले में वह कपड़ा डाला और महादेव का जयकारा करते हुए , महाकुंभ में स्नान किया। इसके बाद खुशी खुशी घर वापस लौट गया।
लेकिन क्या सच में साधु गायब हो गया था? नहीं …साधु दूर से खड़े होकर उन्हें देख रहा था। ऐसा लग रहा था कि साधु इस बात से खुश था कि जिसे कोई नहीं देख पा रहा था, उसे केवल उन दो लोगों ने देखा। वह मुस्कुराते हुए उन्हें देखता रहा फिर वहां से वापस कहां चला गया ,किसी को नहीं पता।